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हे परमात्मा / मन्त्रेश्वर झा

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प्रकृतिक लीला मे
नृत्य मे, गीत मे
पंछीक कलरव मे
फूल पातक सौरभ मे
सृष्टि मे, दृष्टि मे
सुखाड़ आ वृष्टि मे
धार मे कछार मे
उद्धिक प्रहार मे
जन्म मृत्युक पार मे
जे किछु अनन्त अछि
छल, रहय, रहत जे
तकर मर्म बुझत जे
बन्द दुनू आँखि जखन
खुजत त्रिनेत्र तखन,
अपन आन छुटत, टुटत
अरजल धन, गरजल तन
सभटा संसार सार
बुझत जे जतबा काल
ततबा काल, भोग मोह
यश अपयश
ततबा काल लोभ क्षोभ
सुख, दुख, अरजल विछोह
सोह अपन परमात्मा
झलक देखा, पलपल मे
आयब की झलफल मे
झलफल तऽ आबि गेल
सूर्य गीत गाबि गेल
उष्णा सभ भागि गेल
राति निविर गहन भेल
नभक छिद्र सघन भेल
टूटि रहल सभ उमंग
छूटि रहल संग ढंग
आउ आब स्वागत अछि
आउ हे परमात्मा
आर कते हीन करब
लीन करू आत्मा के
आउ हे परमात्मा