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हे बेटी पुनीता / कालीकान्त झा ‘बूच’
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					जीवन मे पापक रौदी
तोरे सं भूमि पुनीता 
भ' गेलि जखन हे बेटी 
अयलीह बनलि तोँ बेटी
मरि गेल अकाल सकाले 
परि गेल प्राण पर जीवन   
भरि गेल मानसक पोखरि  
तरि गेल पातकी यौवन 
वासना विकारक तल सं 
मँहकैत हमर छल कोरा 
तोँ आबि गेलीह जेनाकि
जनु हो  दह्कैत अंगोरा 
दुहू मोनक तान तरंगिनि  
सं गंगा यमुना संगम 
तनुजा निःसृता सरस्वति
क' देलि तनो केँ अनुपम 
तोँ छह यथार्थ मे देवी 
वरु दाइ कहावह ओना   
बेटा तोँ स्वार्थक चानी
बेटी परमार्थक सोना 
बेटा पर नांची कूदी 
पीटी थारी आ बाटी 
बेटी पर कानी खीझी 
ई केहेन क्रूर परिपाटी
	
	