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हे महादेव / लता सिन्हा ‘ज्योतिर्मय’

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देवों के देव, ..... हे महादेव!
सर्वस्व व्याप्त,..... रहते सदैव
ज्योति स्वरूप...... मेरे महादेव!

कण-कण में तू
हर तन में तू
लौकिक जगत
जीवन में तू....
पर इस धरा से भी परे
है अनन्त तू... आकाश तू...

पर है हृदय के पास तू
देवों के देव.... मेरे महादेव!

नीला गगन... तेरा श्याम वर्ण!
दिखे भष्म युक्त तेरा आवरण...
भानू किरण से भी परे
ओंकारयुक्त वातावरण
ब्रह्मांड की उन रिक्ति में
अदृश्य-सा निःस्वास तू
लुप्त तू... आभास तू
पर है मेरा विश्वास तू
देवों के देव.... हे महादेव...!

वो जो शून्य व्यापक क्षेत्र है
तेरा तीसरा वह नेत्र है
हो विलीन अक्षम पिण्ड भी
उसी रिक्त बिंदु सत्य है...

माना विशेष विस्तार तू
अंतःकरण साकार तू
स्वयं योगनिद्रा में घिरे
रूद्र-वीणा की झंकार तू
आदित्य का ओंकार तू
हिय ज्योतिर्मय आधार तू
देवों के देव... हे महादेव....!