भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हों बलि जाऊं कलेऊ कीजे / गोविन्ददास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हों बलि जाऊं कलेऊ कीजे।
खीर खांड घृत अति मीठो है अब को कोर बछ लीजे॥१॥

बेनी बढे सुनो मनमोहन मेरो कह्यो जो पतीजे।
ओट्यो दूध सद्य धौरी की सात घूंट भरि पीजे॥२॥

वारने जाऊं कमल मुख ऊपर अचरा प्रेम जल भीजे।
बहुर्यो जाइ खेलो जमुना तट गोविन्द संग करि लीजे॥३॥