भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
होठ फेर खुलैला / सांवर दइया
Kavita Kosh से
च्यारूं कूंट पसरियोड़ी है आज
अटूट-अखूट मून
पण
थे आ ना समझ्या
कै लोग बोलणो भूलग्या है
ऐ होठ फेर खुलैला
अर फेर सरू हुवैला
ठावी बंतळ !