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हौसला भी रखती हूँ / संतोष श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
बाँध रक्खा है क़सम देकर
उम्र के पड़ावों ने
वरना अपना दरो दीवार से
रिश्ता क्या है
जहाँ न सुबह हो, न शाम ढले
ठहर गए हैं जहाँ
हर एक पल वहीं के वहीं
वहाँ सफ़र से, रवानी से
रिश्ता क्या है
जब्त रखती हूँ
मगर हौसला भी रखती हूँ
बदल गए हैं जहाँ
मायने रिवायत के
वहाँ लकीर पर चलने से
रिश्ता क्या है