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ह‍इआ हो... / भागवतशरण झा 'अनिमेष'

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धार के विपरीत चलो अब
ह‍इआ हो, ह‍इया हो

बिना चले मत हाथ मलो अब
ह‍इआ हो, ह‍इया हो

फ़ौलादी साँचे में ढलो अब
ह‍इआ हो, ह‍इया हो

दले जो तुमको उसे दलो अब
ह‍इआ हो, ह‍इया हो

कभी न पहुँचेगी किनारे तक
तेरे मन की न‍इया हो

हाथ पे हाथ धरे क्यों बैठे
न‍इया पार लग‍इया हो ।