भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
228 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
त्रुटे कहर कलूर<ref>मुसीबतें</ref> सिर ततड़ी दे तेरे बिरहौं फिराक ने कुठियां मैं
सुन्नी त्राट कलेजे दे विच धानी नहीं जिउना मरन ते रूठियां मैं
चोर पैन रातीं घर सुतयां दे देखो दिहें बाजार विच मुठियां मैं
जोगी होइके आये जे मिले मैंनूं किसे अम्बरों कहर दे त्रुटियां मैं
नहीं छड घर बार उजाड़ बैसां नहीं वसना ते नहीं वुठियां मैं
वारस शाह मियां प्रेम चिठियां ने मार पटियां फटियां कुठियां मैं
शब्दार्थ
<references/>