आरती और अंगारे
रचनाकार | हरिवंशराय बच्चन |
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प्रकाशक | |
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भाषा | हिन्दी |
विषय | कविता |
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विविध |
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- ओ, उज्जयिनी के वाक्-जयी जगवंदन / हरिवंशराय बच्चन
- खजुराहो के निडर कलाधर, अमर शिला में गान तुम्हारा / हरिवंशराय बच्चन
- याद आते हो मुझे तुम, ओ, लड़कपन के सवेरों के भिखारी / हरिवंशराय बच्चन
- श्यामा रानी थी पड़ी रोग की शय्या पर / हरिवंशराय बच्चन
- अंग से मेरे लगा तू अंग ऐसे, आज तू ही बोल मेरे भी गले से / हरिवंशराय बच्चन
- गर्म लोहा पीट, ठंडा लोहा पीटने को वक्त बहुतेरा पड़ा है / हरिवंशराय बच्चन
- पीठ पर धर बोझ, अपनी राह नापूँ / हरिवंशराय बच्चन
- इस रुपहरी चाँदनी में सो नहीं सकते पखेरू और हम भी / हरिवंशराय बच्चन
- आज चंचला की बाहों में उलझा दी हैं बाहें मैंने / हरिवंशराय बच्चन
- साथ भी रखता तुम्हें तो, राजहंसिनि / हरिवंशराय बच्चन
- बौरे आमों पर बौराए भौंर न आए, कैसे समझूँ मधुऋतु आई / हरिवंशराय बच्चन
- अब दिन बदले, घड़ियाँ बदलीं / हरिवंशराय बच्चन
- मैं सुख पर, सुखमा पर रीझा, इसकी मुझको लाज नहीं है / हरिवंशराय बच्चन
- माना मैंने मिट्टी, कंकड़, पत्थर, पूजा / हरिवंशराय बच्चन
- दे मन का उपहार सभी को, ले चल मन का भार अकेले / हरिवंशराय बच्चन
- मैंने जीवन देखा, जीवन का गान किया / हरिवंशराय बच्चन
- मैंने ऐसा कुछ कवियों से सुन रक्खा था / हरिवंशराय बच्चन
- रात की हर साँस करती है प्रतीक्षा / हरिवंशराय बच्चन
- यह जीवन औ' संसार अधूरा इतना है / हरिवंशराय बच्चन
- मैं अभी ज़िन्दा, अभी यह शव-परीक्षा मैं तुम्हें करने न दूँगा / हरिवंशराय बच्चन