Last modified on 14 दिसम्बर 2010, at 13:04

मौन निमंत्रण / पवन कुमार मिश्र

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:04, 14 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पवन कुमार मिश्र |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> मधुवन को भीन…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मधुवन को भीनी ख़ुशबू से
महकाए जब रजनीगंधा
अम्बर में तारो संग-संग
इतराए इठलाए चंदा
मुसकाते बलखाते झरने
लगे सुनाने गीत सुहाने
उनकी धुन पर ढलकी जाए
लोरी गाए जब संझा
मौन निमंत्रण मेरा प्रियतम
आ जाओ बन आनंदा
दीप बुझे जब जग के सारे
मन में दीप जलाना तुम
बुलबुल गीत सुनाती है तब
हौले से कदम बढ़ाना तुम
चौकड़िया भरते मृगशावक
राह दिखायेगे तुमको
मेरी बंशी की धुन
मेरा पता बताएगी तुमको
मधुर रागिनी सुनकर आली
आना तुम बन वृंदा
मौन निमंत्रण मेरा प्रियतम
आ जाओ बन आनंदा