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दो ओळियां पछै / सांवर दइया

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आखै जंगळ री कलम बणा
सातूं समंदरां री ले स्याही
धरती रो कागद करियो
            म्हैं ई

आ सोच
हरि गुण अणंत है
मांड-मांड थक जासूं

पण देखो
दो ओळियां मांड
सोच-सागर में डूब्यो-
अबै कांईं लिखूं ?
………….?