भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धूप के दुख ने किया उसको नमन / लाला जगदलपुरी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:27, 21 दिसम्बर 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दर्द ने भोगे नहीं जिस दिन नयन,
मिल गया उस दिन हृदय को गीत धन ।

जब अँधेरा पी चुके सूरजमुखी,
तब दिखाई दी उन्हें पहली किरन ।

नींद टूटी जिस सपन की शक्ति से,
चेतना के घर मिली उसको दुल्हन ।

फूल जब चुभ गए, तो मन को लगा,
है बडी विश्वस्त काँटों की चुभन ।

देखते ही बनी बिजली की चमक,
जब घटाओं से घिरा उसका गगन ।

छाँह के अहसान से जो बच गया,
धूप के दुख नें किया उसको नमन ।