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गोळी / प्रमोद कुमार शर्मा

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कारीगर !
म्हूं सगळी दुकानां अर
कारखानां पर भटक‘र
थारै तांई आयौ हूं !

सुण !
मूं म्हारौ ऐक काम कर दे
ओ लै पिस्तौल
देख इण री नाळ
अर नाप लेय‘र
बणा दे ऐक गोळी !

पण
म्हारी एक सरत है
कै इण गोळी स्यूं
मरणा चाइजै
सिर्फ एक ही धरम रा लोग !
अर बो धरम है
.................

कांई हुयो कारीगर ?
म्हारौ मुण्डो क्यूं तकोवै है ?
कारीगर ! ओ कारीगर !