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जूता / अरुण चन्द्र रॉय
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जूता
पैरों में होता है
सभी जानते हैं
कोई नई बात नहीं
लेकिन
जूता
पैरो की ठोकरों में
रहता है
सदैव
झेलता हुआ
तिरस्कार
अवहेलना
हाँ
मैं कर रहा हूँ
जूते की बात
जो
पैरों में नहीं
हमारे बीच रहता है