भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आँच / अरुण चन्द्र रॉय

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:00, 23 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरुण चन्द्र रॉय |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> '''1.''' सही आँच प…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

1.
सही आँच पर
पकती है
रोटी
नरम और
स्वादिष्ट
बताया था
तुमने
जब खो रहा था
मैं
अपना धैर्य

2.'
जब तक
चूल्हे में रहती है
आँच
रहती है
मर्यादित

3.
रिश्तों को
सहेजने के लिए भी
चाहिए
भावों की
सही आँच
समय-समय पर

4.
आँच
कई बार
शीतल होती है
जैसे
तुम्हारे
आँचल की आँच
जिसने
अपनी नरमाहट से
दिया ए़क नया जीवन