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माटी / कन्हैया लाल सेठिया
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कोनी
माटी स्यूं
मोटी कोई साच,
सगला
तत
माटी रै पाण
सत,
नही‘स
कुण अणभूतै
बां रो हूणों ?
निरथक हो
सूरज रो तपणो
आभै रो धूणो !
कोनी लादतो
चिड़कली पून नै
कठेई आळो,
किंयां टिकता
बिन्यां पींदै
समदर‘र हियांलो ?
बणगी माटी
सिसटी रो काच,
कोनी माटी स्यूं
मोटी
कोई साच !