भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सितारे लटके हुए हैं तागों से आस्माँ पर/ गुलज़ार
Kavita Kosh से
सितारे लटके हुए हैं तागों से आस्माँ पर चमकती चिंगारियाँ-सी चकरा रहीं आँखों की पुतलियों में नज़र पे चिपके हुए हैं कुछ चिकने-चिकने से रोशनी के धब्बे जो पलकें मुँदूँ तो चुभने लगती हैं रोशनी की सफ़ेद किरचें
मुझे मेरे मखमली अँधेरों की गोद में डाल दो उठाकर चटकती आँखों पे घुप अँधेरों के फाये रख दो यह रोशनी का उबलता लावा न अन्धा कर दे.