भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चौदहवीं रात के इस चाँद तले/ गुलज़ार

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:28, 24 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलज़ार }} {{KKCatNazm}} <poem> चौदहवीं रात के इस चाँद तले सुर…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चौदहवीं रात के इस चाँद तले
सुरमई रात में साहिल के करीब
दुधिया जोड़े में आ जाये जो तू
ईसा के हाथ से गिर जाये सलीब
बुद्ध का ध्यान चटख जाये ,कसम से
तुझ को बर्दाश्त न कर पाए खुदा भी

दुधिया जोड़े में आ जाये जो तू
चौदहवीं रात के इस चाँद तले !