भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पढ़ता हुआ बच्चा (एक) / अक्षय उपाध्याय

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:04, 25 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अक्षय उपाध्याय |संग्रह =चाक पर रखी धरती / अक्षय उ…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बच्चे के बस्ते पर किताबें हैं
और उसके खेल का तमंचा भी

बच्चा भीतर के क़िताबी भय को
तमंचे से उठाने के लिए
ऊपर देखाता है

पिता के सच को
माँ की आँखों में झूठ बना देखता है बच्चा
और क़िताबों में लौटने की कोशिश करता है

बच्चे का बच्चा मन
सोचता है
क़िताब और तमंचे के बीच का सच

यानी सच बोलना कितना ज़रूरी नहीं--
किस वक़्त ज़रूरी है
और किस वक़्त
पिता और माँ का सच एक होगा
सपने में क़िताबों से पहले
खेल का तमंचा होगा और
अनुभव का गीत