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रंगी चादर / पूरन मुद्गल
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उनके उपदेश के बावजूद
चादर सफ़ेद नहीं रही
मैं उसे मैली भी नहीं कह सका
उसे रंगता रहा
अनेक रंगों में
अच्छा लगता था
उसका रंगीन होना
उसके सफ़ेद रहने में
वे किसी रहस्य को तलाशते
मैं उसके ताने-बाने में
सुनता रहा
आरोही-अवरोही स्वर
उस पर बनाता रहा
देवों के धरती-चरित
रवि वर्मा के मिथक चित्र
उनकी चादर भेदभरी थी
जो मैंने बुनी
उसमें लिपटी थी
तेरी बात मेरी बात ।