भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

टींगर बुध / कन्हैया लाल सेठिया

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:28, 28 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कन्हैया लाल सेठिया |संग्रह=दीठ / कन्हैया लाल से…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


जगण दै
वासतै नै
आप री मोय,
मत कर चूचकाड़या
घर‘र गुवाड़या
कोनी ठाकर रो गढ
जे सिलगग्या
छानां‘र झूपां
कोनी बुझै अलीतो
बिनां हुयां
राख री ढिगल्यां,
कठै मिलसी
काल रै बरस में
पन्नी‘र पंसुरो
मूंज‘र गोबर,
सुण‘र डोकरै री बात
हंसै खीं खीं टींगर
बे कोनी जाणै
के हुवै डर ?
आ इसी उमर
लागै जद
अणभव स्यूं आछो
इचरज ।