वैसे वह मेरा शत्रु नहीं है / चंद्रकांत पाटील
वैसे वह मेरा शत्रु नहीं है,
और मित्र तो है ही नहीं
बावजूद इसके मैं पहचानता हूँ उसे,
मैंने ठीक से देखा था उसे तब
जब वह भेंट दे रहा था पूरी विनम्रता से
पूरे शहर को
और शहर होने की प्रतीक्षा में बैठे
आसपास के उन तमाम गाँवों को
जब शहर की सभी दीवारों पर
घृणास्पद नारों की छिपकलियाँ रेंग रही थीं,
तब शहर की गलियों और परनालों में
बह रहा था, मादक द्रव
और तमाम झोपड़ियाँ झूम रही थीं
उसी की कृपा से ।
शहर की सभी खुली ज़मीन पर
उसी की सत्ता है,
उसके लिए ही बजती हैं मंदिर की घंटियाँ
और मस्ज़िद के भोंपू ।
मैं पहचानता हूँ उसे
इस बिस्तर पर लेटे हुए अब
उसी का विचार कर रहा हूँ अब
क्योंकि मैं बीमार हूँ
और सिर्फ़ विचार करने के सिवा
दूसरा कुछ भी नहीं कर पा रहा हूँ मैं
प्रत्येक निवाले के साथ खाए गए
ज़हरीले पदार्थ को,
विषहीन करने वाला
मेरा लीवर और मेरे दोनों मूत्र-पिंड
ठीक से काम नहीं कर पा रहे हैं ।
परंतु मेरा अपना- उसका नहीं
वह सहजता से पचा पाता है
चाहे जो और चाहे जब ।
जब पहली बार देखा था मैंने उसे
उसकी मूँछें भरपूर और गलगुच्छेदार थीं
शरीर गेंदे के फूल की तरह फैला हुआ
कुछ तो महत्त्वपूर्ण कहने के लिए
खड़ा हो गया वह, मैदान के उस मंच पर
और उसके मोटे होंठ अलग होते ही
बाहर निकला
उसके विशालकाय शरीर में सुप्तावस्था में स्थित स्त्री की आवाज़,
सामने बैठे हुए लड़कों की भीड़ में से प्रचण्ड हँसी फूटी ।
और दूर बैठकर उसे देखनेवाला झुण्ड लजा गया आदत के अनुसार
अब जब मैं बेहद बेचैन हूँ
और तिलमिला रहा हूँ नींद के लिए
तो वह खर्राटे भर रहा है, प्रगाढ़ नींद में
और उसके उन खर्राटों की भयानक आवाज़ से,
थर्रा रहे हैं घर और न्य इमारतें
लोग भाग रहे हैं, भयभीत होकर खरगोश की तरह
आप देखेंगे
कि दूसरी बार जब वह आएगा आपके पास
आप विचारों में गढ़ गए होंगे
तब आपकी ओर उँगली से इशारा कर,
वह यह कहेगा
कि जो लोग विचार कर रहे हैं इस समय
वे हैं ख़ूनी, दग़ाबाज़ और हत्यारे ।
और तब आपको पता लग चुका होगा
कि आप तो बहुत पहले ही मर चुके थे ।
मूल मराठी से सूर्यनारायण रणसुभे द्वारा अनूदित