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काळ री छियां / अशोक जोशी 'क्रांत'

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सै सूं पैली
दीठी
काळ री छियां
मां रै हाचलां रै ठौड़
उगियोड़ै
सूखोड़ै खालड़ा में
तद ई तो
वा
दबाय दी ही
होठां बीचै
एक बीटड़ी
जिण में व्हैतौ
एक दो टपको
सै’द
 
दिन-दिन
सालो-साल
बसाळै पछै
काळ री आ छियां
पसरती ई गी
रसोई सूं
घर रै आंगण
खेत, खलियांण, गांव
तालाब, कूवौ, बेरी
अर
टांका तक
 
आं अबखायां रै दिनां
राज खोल देवै फेमिन
तालाब खुदावण
सड़क ठावण रै मिस
पण
तपतै तावड़ै
ऊभराणै पगां
रेतो ढोवता
काकड़ी कूटती वेळा
सूखता होठां रै पाण
घणी याद आवै
वा बीटड़ी
जिण में व्हैतो
एक दो टपको
सै’द