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अनुनय / निज़ार क़ब्बानी
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दूर रहो
मेरे दृष्टिपथ से
ताकि मैं रंगों में कर सकूँ अन्तर ।
दूर हो जाओ
मेरे हाथों की सीमा से
ताकि मैं जान सकूँ
इस ब्रह्माँड का वास्तविक रूपाकार
और खोज कर सकूँ
कि अपनी पृथ्वी है सचमुच गोलाकार ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह