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शबे गम की सहर नहीं होती / कुमार अनिल

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शबे गम की सहर नहीं होती
जिन्दगी अब बसर नहीं होती

यूँ तो दुनिया नवाजती है हमें
क़द्र घर में मगर नहीं होती

क्या बताऊँ मैं कितना डरता हूँ
मेरी बेटी जो घर नहीं होती

हर कोई पढ़ ले जिन्दगी की किताब
इतनी भी मुख़्तसर नहीं होती/>