भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शबे गम की सहर नहीं होती / कुमार अनिल
Kavita Kosh से
Kumar anil (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:06, 2 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem> शबे गम की सहर नहीं होती जिन्दगी अब बसर नहीं होती यूँ तो दुनिया …)
शबे गम की सहर नहीं होती
जिन्दगी अब बसर नहीं होती
यूँ तो दुनिया नवाजती है हमें
क़द्र घर में मगर नहीं होती
क्या बताऊँ मैं कितना डरता हूँ
मेरी बेटी जो घर नहीं होती
हर कोई पढ़ ले जिन्दगी की किताब
इतनी भी मुख़्तसर नहीं होती/>