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कथित कुछ : हवा / मोहन सपरा

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1.
हवा तो
मुझे ज़िन्दा रखती है
और तुम्हें
क्यों मुर्दा बना गई ।

2.
हवा के सामने
घिघियाना छोड़ो
क़त्ल हुए
शहर में
यात्रा पर निकले
सूर्य को पकड़ो
हाथों में जकड़ो ।

3.
तुम्हारे सामने
वह रास्ता है
जिधर से हवा आती है ।

4.
इस
पुलपुली-सी ज़मीन पर
हवा से डरकर खड़े हो
क्यों ?

5.
हवा से
कुछ नहीं सीखता
इस देश का आदमी ।

6.
वृक्ष की तरह
उठता हुआ आदमी
कहाँ
गुप्प-चुप्प खो गया
किन कन्दराओं में सो गया
हवा से
भयभीत हो गया ।

7.
हवा में
घिरा बैठा हूँ
शर्मिन्दा हूँ।

8.
तुम
किसे तलाशते हो
इस हवा में ।

9.
मुट्ठियाँ
तो खुल गईं,
सूर्य -
तो सच है
हवा से लपेट लो
बाँहों में
समेट लो ।

10.
हाथ उठा
तो हवा ने
रंग बदल लिया
व्यवहार का
ढंग बदल लिया ।

11.
दनदनाती हवा भी
खुली आँखों के सामने
दिशा बदल लेती है ।

12.
पत्ते फड़फड़ाए
हवा में
तुम तो
आदमी हो
क्यों घबराए ?