भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तन गई रीढ़ / नागार्जुन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:39, 6 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} रचनाकार: नागार्जुन Category:कविताएँ Category:नागार्जुन ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ झु...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रचनाकार: नागार्जुन

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~


झुकी पीठ को मिला

किसी हथेली का स्पर्श

तन गई रीढ़


महसूस हुई कन्धों को

पीछे से,

किसी नाक की सहज उष्ण निराकुल साँसें

तन गई रीढ़


कौंधी कहीं चितवन

रंग गए कहीं किसी के होठ

निगाहों के ज़रिये जादू घुसा अन्दर

तन गई रीढ़


गूँजी कहीं खिलखिलाहट

टूक-टूक होकर छितराया सन्नाटा

भर गए कर्णकुहर

तन गई रीढ़


आगे से आया

अलकों के तैलाक्त परिमल का झोंका

रग-रग में दौड़ गई बिजली

तन गई रीढ़


1957 में रचित