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कहीं कुछ है / मोहन सपरा
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1.
कहीं कुछ है
हवा में, जल में, नीले आकाश में
जो हर किसी को बाँधता है
2.
कहीं कुछ है:
मिट्टी में देखो
उसकी गंध में डूबो
फिर गुनगुनाओ -- गीत गाओ !
3.
कहीं कुछ है:
इच्छाओं / आकांक्षाओं के चीख़ने में
जुबान के थरथराने में
दरकती आवाज़ में
सपने टूट जाने में
अपना किसे कहोगे
किनारा पीछे छूट जाने के बाद ।
4.
कहीं कुछ है:
पहाड़ की चोटी पर
समुद्र की गहराई में
किसे कितना ढूँढ़ पाओगे
अपने से अलग होकर ।