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सुबह-सुबह / नागार्जुन

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रचनाकार: नागार्जुन

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सुबह-सुबह

तालाब के दो फेरे लगाए


सुबह-सुबह

रात्रि शेष की भीगी दूबों पर

नंगे पाँव चहलकदमी की


सुबह-सुबह

हाथ-पैर ठिठुरे, सुन्न हुए

माघ की कड़ी सर्दी के मारे


सुबह-सुबह

अधसूखी पतइयों का कौड़ा तापा

आम के कच्चे पत्तों का

जलता, कड़ुवा कसैला सौरभ लिया


सुबह-सुबह

गँवई अलाव के निकट

घेरे में बैठने-बतियाने का सुख लूटा


सुबह-सुबह

आंचलिक बोलियों का मिक्स्चर

कानों की इन कटोरियों में भरकर लौटा

सुबह-सुबह


1976 में रचित