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अक्षरा से / सत्यनारायण
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अरी अक्षरा
तू है बढ़ी उम्र का
गीत सुनहरा
मेरे उजले केश
किंतु, इनसे उजली
तेरी किलकारी
तेरे आगे
फीकी लगती
चाँद-सितारों की उजियारी
कौन थाह पाएगा
बिटिया
यह अनुराग
बड़ा है गहरा
तू हँसती है
झिलमिल करती
आबदार मोती की लड़ियाँ
तेरी लार-लपेटी बोली
छूट रहीं
सौ-सौ फुलझड़ियाँ
ये दिन हैं
खिलने-खुलने के
इन पर कहाँ
किसी का पहरा
होंठों पर
उग-उग आते हैं
दूध-बिलोये अनगिन आखर
कितने-कितने
अर्थ कौंधते
गागर में आ जाता सागर
मैं जीवन का
वर्ण आखिरी
तू मेरा
अनमोल ककहरा ।