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चुप रहो मत / श्रीकृष्ण शर्मा
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कुछ कहो मत,
किन्तु ऐसे चुप रहो मत !
दर्द है
तो कुछ कराहो,
दुःखी हो
आँसू बहाओ,
क्षोभ है, चीख़ो !
मगर तुम इस तरह
भीतर दहो मत !
मौन क़ातिल के लिए
बल
शोर उसकी भीति
पाग़ल
भीड़ का
आक्रोश बन उभरो
कि जो है मौत !
लेकिन यों अकेले
तुम सलीबों को सहो मत !
कुछ कहो मत,
किन्तु ऐसे चुप रहो मत !