भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
काट रहे हैं फीते लोग / लाला जगदलपुरी
Kavita Kosh से
Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:21, 3 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाला जगदलपुरी |संग्रह=मिमियाती ज़िन्दगी दहाड…)
उन्मन हैं मनचीते लोग,
वर्तमान के बीते लोग।
भीतर भीतर मर मर कर,
बाहर बाहर जीते लोग।
निराधार खून देख कर
घूंट खून के पीते लोग।
और उधर जलसों की धूम
काट रहे हैं फीते लोग।
भाव शून्य शब्दों का कोश,
बाँट रहे हैं रीते लोग।