भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क़िस्से गुलनार के / दिनेश सिंह
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:25, 4 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= दिनेश सिंह |संग्रह= }} {{KKCatNavgeet}} <Poem> पीपल के पके पात प…)
पीपल के पके पात
पंछी पतझार के,
थोड़ी ऋतु और अभी बाक़ी है
उड़ने दो छंद ये बहार के ।
फूल-फूल अगवानी
शूल, खिंची पेशानी
मौसम का जाने कब तक है--
दाना-पानी ।
पानी के पीछे हैं
क़िस्से गुलनार के !
थोड़ी लय और अभी बाक़ी है
उड़ने दो गीत नदि पार के ।
भोरहरे की लाली
माँज रहा है माली
फूलों की आँखों में
है पूजा की थाली
थाली के फल-फूल
रिश्ते अंगार के,
थोड़ी-सी बर्फ़ अभी बाक़ी है
गलने दो, दो पहर खुमार के ।