भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक थी चिड़िया / विमलेश त्रिपाठी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:02, 6 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विमलेश त्रिपाठी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> एक चिड़िया …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक चिड़िया थी
अकेली और उदास
दिन बदले रातें बदलीं
एक और चिड़िया आई
दोनों ने मिलकर
एक घोंसला बनाया

चिड़िया ने दो अंडे दिए
दो चूजे आए
और घोसले में चीं-चीं चाँय
और मीठी किलकारी

फिर एक दिन चिड़िया रूठ गई
दूसरी मे मनाया
फिर एक दिन चिड़िया ने झगड़ा किया
दूसरी चुप रही
बात फिर आई-गई हो गई

अब अक्सर रूठना होता
मनाना होता
झगड़े होते
ऐसी बातों पर कि कोई सुने तो हँसी आ जाय

बेतुकी बातें
झमेले बेकार के
चूजे डरे-सहमे
घोंसले में चीख़ता सन्नाटा
शोर के बीच

यूँ तिनके बिखरते गए
एक-एक जोड़े गए
बातें थीं कि बढ़ती गईं

एक दिन दूसरी चिड़िया उदास
घोसले से उड़ गई
उड़ी कि फिर कभी नहीं लौटी

फिर पहला चूजा उड़ा
दूसरा इसके बाद

चिड़िया फिर अकेली थी
अकेली स्मृतियों के बीच
निरी अकेली

पेड़ की जगह
अब ठूँठ था
रात के सहमे सन्नाटे में
पेड़ के रोने की आवाज़ आती

घोसले में एक तिनका भर बचा था
एक तिनका
और एक अकेली
चिड़िया..