भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुण कैवै आजादी कोनी ? / भंवर भादाणी

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:29, 6 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भंवर भादाणी |संग्रह=थार बोलै / भंवर भादाणी }} [[Catego…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


कुण कैवै है
बोलण री
आजादी कोनी ?
खुली छूट है
सहर रै फुटरापै
गजल री नाजुकता
अर
कविता री/फबती घड़त रा बोलां
भासण झाड़ण री
छूट है अथाग
भासा नै चाटण री
कविता खातर
चांदा मामा नै चंचेड़ण
अर
भासाई दंगा करावण री।
छूट है अणमाप
बधते कीड़ी नगरै नै
पगां सूं
चींथण री
धौहै कबुड़े री
गाबड़ मसोसण री
अर
सिकारी कुत्ता पाळण री।
छूट है मोकळी
चाटण री
फर्राटे सूं दौड़ण री
हवा सूं बात्यां करण री
अर
माटी री मूरत्यां तोड़ण री
छूट है उणां नै
गूंगा उधेड़
धूप चाटण री
अर
फसळां री सोनळिया भळभळ नै
कोठार-बंद राखण री
छूट कोनी तौ
फगत आजादी नै
इयां-बियां बरतण री
बै सगळा ही राखै
आजादी नै
आपरै बळपड़ती
जिका
सींचै है कीड़ी नगरौ
खोल राखी है
खिडक्यां
मिंटावण नै अमूजौ।
देसद्रोही है
बै सगळा
जिका नाच नीं सकै
तबले री थाप
बांसरी री धुन
मिंदर रै टंकोरां
अर
चांदी री रमझौळा सागै।
जानलेऊ है
बै बापड़ा / नागड़ा
जिका धूंऔ पीवै
अर
फूंक सूं/औटयौड़ी
आग सुळगावै।
कुण कैवै
म्हानै
आजादी कोनी
बोलण री ?

कैवणिया साव ई
झूठा / साखी है
वींसींजतौ सूरज
अर अवसरवादी चांद !