भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

माँ की नींद / प्रदीपचन्द्र पांडे

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:23, 8 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रदीपचन्द्र पांडे |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <Poem> बंदूक क…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बंदूक की गोली से भी
ऊँची भरी उड़ान
पक्षी ने

देर तक
उड़ता रहा आसमान में
सुनता रहा बादलों को
देखता रहा
चमकती बिजलियाँ

उस समय
घूम रही थी पृथ्वी
घूम रहा था समय
ठीक उसी समय टूटी
बूढ़ी माँ की नींद

क्यों टूटी
बूढ़ी माँ की नींद ?