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यातना / केदारनाथ अग्रवाल
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भोगने दो मुझे
लय न पा सकी विलाप-व्याकुल
कविता की यातना
भोगने दो मुझे
बलात् प्रताड़ित विकल बेबस
विचार की यातना
भोगने दो मुझे
ओठ में अटकी क्रांतिकारी
पुकार की यातना
भोगने दो मुझे
अंधकार में जल रही मौन
मशाल की यातना
भोगने दो मुझे
आदमियों के बीच
आदमियों की बनाई हुई यातना।
रचनाकाल: ०९-०१-१९६१