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स्वार्थ और स्नेह / केदारनाथ अग्रवाल
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स्वार्थ के शृंगार का संसार सुविधा से सुखी है
स्नेह के शृंगार का संसार दुनिया से दुखी है
स्वार्थ के शृंगार की छवि लाभ लोभी आसुरी है,
स्नेह के शृंगार की छवि त्याग तोषी माधुरी है,
स्वार्थ ने सोना कमाया, गेह भी अपना बनाया
स्नेह ने सोना गँवाया, गेह भी अपना गँवाया।
रचनाकाल: ०७-०८-१९६१