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अडिग रहा हूँ अडिग रहूँगा / केदारनाथ अग्रवाल

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यह जो मैं हूँ देवदार की नव तरुणाई
नील रहस्यों तक जाने की दृढ़ ऊँचाई
चट्टानों में जड़ें गाड़कर मैंने पाई

जहाँ नहीं जी पाया कोई वहीं जिऊँगा,
अडिग रहा हूँ-अडिग रहूँगा-नहीं गिरूँगा;
लौट गई हर आँधी जो आकर टकराई।

रचनाकाल: १५-०९-१९६१