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विरज में रोए / केदारनाथ अग्रवाल

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भूल गया दुख-द्वन्द्व किनारा
जब पाया सामीप्य तुम्हारा
रज में रहे विरज में रोए।

रचनाकाल: १२-०१-१९६२