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सत्य का कत्ल हुआ / केदारनाथ अग्रवाल

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सरेआम
सत्य का कत्ल हुआ
मक्कार मकड़ी, तुरन्त,
सिर से पैर तक जाला बुन गई
कड़ुआ धुआँ बंदी हुआ
केस चला
राह ने गवाही न दी
धूप ने कुछ न कहा
धरती आई।
मिट्टी बोली :
शव ने स्वयं कहा :
लकवा मार गया।
न्यायी संशय
भ्रमवश बोला :
कैदी छूट गया।

रचनाकाल: १५-०९-१९६५