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शराब जो आँख में है / केदारनाथ अग्रवाल
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शराब
जो आँख में है
उसे पी है जिसने
उसका नशा
आग में है
जो लगी है
पलास के वन में
मेरे मन में
रचनाकाल: १०-०३-१९६७