भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आदमी को शक है / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:36, 9 जनवरी 2011 का अवतरण ("आदमी को शक है / केदारनाथ अग्रवाल" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
सुबह फक है
रोशनी गफ है
आदमी को शक है
सुबह न होने का
रोशनी न होने का
रचनाकाल: २८-०७-१९६७