भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
केला / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:13, 9 जनवरी 2011 का अवतरण ("केला / केदारनाथ अग्रवाल" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
समय बदला
कटे पत्ते
बड़े लम्बे हौसले के :
जड़ें गाड़े खड़ा केला
अब अकेला
तना भर है,
जिए चाहे जिए जैसे,
बना भर है,
हरा हरदम गया
गम से नहीं दहला
रचनाकाल: ०४-०४-१९६८