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सूर्य की अंधी आँख खुली है / केदारनाथ अग्रवाल
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देखने को बहुत कुछ दिख रही है
न देखने खाली आँख खुली है
और कुछ नहीं दिख रहा
देखकर देखना गायब है
सूर्य की अंधी आँख खुली है
न देश दिखता है
न विदेश
न पहाड़ जैसा क्लेश
न चीरता आरा
न पेट भरने को चारा
रचनाकाल: १९-०२-१९६९