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कोई देखता है मुझे / केदारनाथ अग्रवाल

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कोई देखता है मुझे
मेरे भीतर
और बाहर
मेरी तरह का
मुझसे मिलता
परिचय में अपरिचय
व्यक्त में अव्यक्त
लिए
बड़ा हमदर्द
मगर दर्द से मुक्त
निर्विकार
निःसंग
निरलस
नितान्त समदृष्टा
न कोई गैर
न कोई और

रचनाकाल: १४-०३-१९६९