भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खोपड़ों पर लट्ठ / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:29, 9 जनवरी 2011 का अवतरण ("खोपड़ों पर लट्ठ / केदारनाथ अग्रवाल" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
खोपड़ों पर
लट्ठ
जमीन पर
लठैत
चलते हैं,
जिंदगी पर
मौत
और
विनाश के
ठगैत
पलते हैं
रचनाकाल: ०९-०४-१९७०