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अहं / केदारनाथ अग्रवाल
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न द्वार खुला
न दीवार गिरी
हम
मन की मछली
मन के तालाब में मारते रहे
अहं का जाल
स्वयं को
छलने के लिए
पसारते रहे
रचनाकाल: १२-१०-१९७०