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कहें केदार खरी-खरी / अनिल जनविजय
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रचनाकारः अनिल जनविजय
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कहें केदार खरी-खरी
बात उनकी
नीम की निबौली
चखने में कड़वी लगे
पर जो होती
गुणयुक्त औषध भरी
वे न कहते
बात ऐसी
सुनने में भली लगे
कानों को रसभरी लगे
चिकनाई युक्त सजी-सँवरी
बात उनकी
तेज तीखी
आदमी के दिल में चुभे
बरछी सी सीधी घुसे
बीच भोजन मुँह में जैसे
आ गयी हो मिर्च हरी
कहें केदार खरी-खरी