भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
विमाता के प्रति / अनिल जनविजय
Kavita Kosh से
Hemendrakumarrai (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 23:01, 6 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} रचनाकारः अनिल जनविजय Category:कविताएँ Category:अनिल जनविजय ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~...)
रचनाकारः अनिल जनविजय
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
माँ, प्यारी माँ
मुझे अपनी शरण में ले
मैं सूखे सरोवर की हाँफ़ती मछली
इक लाल गुलाब की सूखी हुई कली
अपनी स्नेहमयी गंध मुझमें भर दे
माँ, प्यारी माँ
मुझे अपनी शरण में ले
लहूलुहान चिड़िया-सी यंत्रणा में हूँ
सोचती हूँ तेरी ख़ैरगाह में रहूँ
माँ तू मुझे बिम्ब अपना दे
माँ, प्यारी माँ
मुझे अपनी शरण में ले
भूल नहीं पाती मैं अपना व्यतीत
तेरे कंठ से फूटता पवित्र संगीत
मुझको तू अपनी हरीतिमा दे
माँ, प्यारी माँ
मुझे अपनी शरण में ले